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RAINBOW



इन्द्रधनुष्यातील विविध रंग





नमस्कार शिक्षक मित्रांनो* विद्यार्थ्याना इन्द्रधनुष्यातील *Rainbow*

रंगांची नावे ईंग्रजीत व मराठीत लक्षात ठेवायला कठीण जाते ? ? ?

मग खालील *ट्रिक* वापरा ....

फक्त विद्यार्थ्यांना

*VIBGYOR*

हा शब्द पाठ कारायला सांगा .

मराठी रंगांच्या नावासाठी

*ता ना पी ही नि पा जा*

हा शब्द पाठ करायला सांगा .

*VIBGYOR*

*V* - violet *जांभळा*

*I* - indigo *पारवा*

*B* - blue *नीळा*

*G* -. green *हिरवा*

*Y* - yellow *पिवळा*

*O* - orange *नारंगी*

*R* -. red *तांबडा*


*तानापीहिनिपाजा*

*ता* - *तांबडा*

*ना* - *नारंगी*

*पि* - *पिवळा*

*हीं* - *हिरवा*

*नि* - *नीळा*

*पा* - *पारवा*

*जा* - *जांभळा*

विद्यार्थी रंगांची नावे कधीच विसरणार नाही.

पावसानंतर आकाशात बनलेल्या सुंदर आकृतीला *इन्द्रधनुष्य* म्हणतो .
इन्द्रधनुष्यावर अनेक सुंदर कविता बनलेल्या आहेत.याविषयी आणखी
माहिती मिळवायची असेल तर वरील दुवा वापरा .....


इन्द्रधनुष्य के बारे मे जानकारी

तुमने स्कूल की बुक्स में अक्सर इंद्रधनुष पर ढेरों कविताएं पढ़ी और सुनी होंगी। बहुत से बच्चों ने
इंद्रधनुष देखा भी होगा। बारिश के बाद आसमान में सात रंगों की बनी खूबसूरत आकृति को इंद्रधनुष
कहते हैं। तो आओ मृदुला भारद्वाज से जानते हैं कि क्या कहते हैं इंद्रधनुष के सात रंग..
बरसात के मौसम में जब कभी आसमान में काले-काले बादल छाए होते हैं तो मन खुशी से खिल
उठता है और तभी अगर हल्की-फुल्की बारिश की फुहारें पड़ने लगें तो सभी झूम उठते हैं। बारिश के
बंद होने के बाद जब सूर्य की किरणें बादलों से टकराती हैं तो आकाश में रंग-बिरंगी आकृति दिखाई
देती है। यही आकृति इंद्रधनुष कहलाती है। इंद्रधनुष के निकलते ही मोर नाचने लगते हैं। चारों तरफ
मानो खुशी का माहौल बन जाता है।
1.बैंगनी
बैंगनी रंग का नाम एक सब्जी बैंगन के नाम पर रखा गया है। इसे अंग्रेजी में वॉयलेट कहते हैं, जो
इसी नाम के फूल से रखा है। वॉयलेट रंग, बैंगनी रंग का हल्का शेड होता है। बैंगनी रंग रॉयलिटी,
लग्जरी और वेल्थ का रंग हैं। ये रंग लाल और नीले रंग के मेल से बनता है।
2.जामुनी
जामुनी रंग का नाम जामुन फल के नाम पर रखा गया है। ये बहुत ही गहरा रंग है। ये रंग हमें
विराट होने का एहसास कराता है। जामुनी रंग रीगल (शाही) रंगों की सूची में आता है। जामुनी रंग
कहता है कि हमें इस बड़ी सी दुनिया में बहुत बड़ा बनना है यानी अपना नाम रोशन करना है।
3.नीला
आसमान और सागर दोनों का रंग नीला होता है। नीला रंग ठंडा रंग माना जाता है। नीला रंग हमें
शांत, भरोसेमंद, वफादार और अपने जीवन में स्थिरता लाने की शिक्षा देता है। नीला रंग हमें सिखाता
है कि हमें किसी भी परिस्थिति में अपना नियंत्रण नहीं खोना चाहिए और हर काम ठंडे दिमाग से
करना चाहिए।
4.हरा
हरा रंग हरियाली का प्रतीक माना जाता है। हरा रंग वसंत के आने यानी नए जीवन का सूचक होता
है। घनी सर्दियों के बाद बाग-बगीचों, पेड़-पौधों पर फिर से एक बार हरियाली नजर आने लगती है।
हरा रंग हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन को रोज एक नई उमंग, उत्साह और धैर्य के साथ जीना
चाहिए।
5.पीला


पीला चमकदार और सुंदर रंग है। यह सूर्य का रंग है, जो प्रतीक है जीवन और रोशनी का। यह रंग
हंसमुख है। स्वच्छ और उज्जवल है। स्पष्टता और जागरूकता की शिक्षा देता है। यह ऊर्जा का प्रतीक
है।
6.नारंगी
नारंगी रंग सुबह-सुबह के सूरज का रंग हैं। जिस तरह सूरज सुबह-सुबह निकलकर हमें उजाला देता
है, उसी तरह ये रंग आस और विश्वास का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि अंधेरे के बाद रोशनी
जरूर आती है।
7.लाल
लाल रंग रक्त का रंग है। ये वीरता, साहस और शौर्य का प्रतीक होता है। जिस तरह सबके लहू का
एक ही लाल रंग होता है, उसी तरह लाल रंग सिखाता है कि हमें बिना किसी भेदभाव के सभी के
साथ प्यार से रहना चाहिए।
कैसे बनता है इंद्रधनुष’ बरसात के मौसम में जब पानी की बूंदें सूर्य की किरणों पर पड़ती हैं, तब सूर्य
की किरणों का विक्षेपण ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण बनता है। आसमान में शाम के समय
पूर्व दिशा में और सुबह पश्चिम दिशा में, बारिश के बाद लाल, नीला, पीला, हरा, आसमानी, नीला और
बैंगनी रंगों का वृत्ताकार चक्र जैसा कभी-कभी दिखाई देता है। ये ही सप्तरंगी इंद्रधनुष है।
सोचो अगर हमारे जीवन में रंग न होते तो हमारी जिंदगी कितनी बदरंग होती। सब चीजें काली या
सफेद ही होतीं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है। रंगों की
उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत सूर्य ही है। सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं। प्रिज्म की सहायता
से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है। ये रंग हैं- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा,
पीला, नारंगी और लाल।


रंगों का महत्व और कलर थेरेपि से करें रोगों का ईलाज….आइए जाने




रंग मानव और सृष्टि के हर चेतन जीव पर गहराई तक असर डालते है। इससे स्पन्दन पैदा होते हैं
जो रोग निवारण का काम करते हैं, प्राचीन काल में भारत ,चीन और मिश्र में कलर थेरेपी का उपयोग
होने के प्रमाण प्राचीन पुस्तकों में मिलते है।रंग हमारे जीवन में उत्साह-उमंग भरते हैं, हमें जीवंत


बनाते हैं। निश्चित ही इनका एक मनोवैज्ञानिक महत्व है। इसीलिए हम रंगों का पर्व होली मानते हैं,
रंगों से सराबोर होते हैं। ये रंग हमें सिर्फ खुशी ही नहीं देते, बल्कि हमारे कई शारीरिक-मानसिक
विकारों को भी दूर करते हैं। असल में ऐसा रंगों की अपनी प्रकृति की वजह से होता है। रंगों के
जरिए रोगों के इस ट्रीटमेंट मैथड को ही कलर थेरेपी कहते हैं।
आइए जानते हैं, कलर थरेपी कैसे होती है-
हमारे जीवन में रंगों का बहुत महत्व होता है। ये हमारे शरीर और मन के भावों को भी प्रभावित
करते हैं। दरअसल, हर रंग की अपनी विशेष प्रकृति होती है, जो हमें गहराई तक प्रभावित करती है।
रंगों के इन्हीं गुणों के आधार पर कई रोगों का इलाज कलर थेरेपी में किया जाता है। इस थेरेपी की
सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे किसी भी उम्र में उपचार कराया जा सकता है। साइड इफेक्ट न
होने से यह बेहद सुरक्षित भी मानी जाती है। जानते हैं, क्या है कलर थेरेपी और कैसे किया जाता है
इसके जरिए उपचार।


क्या है कलर थेरेपी-
मानव शरीर पांच तत्व, वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश से मिलकर बना है। ये पांचों तत्व
मिलकर हमारे शरीर में मौजूद वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखते हैं। इन तीनों के संतुलित
रहने पर ही हम स्वस्थ रहते हैं। लेकिन जब इन तीनों में से कोई भी एक तत्व असंतुलित हो जाता
है, तब हम बीमार हो जाते हैं। यानी, यह असंतुलन बीमारी के संकेत होते हैं। इसे ऐसे भी समझा जा
सकता है, हमारे शरीर में इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह सात चक्र होते हैं। जब शरीर स्वस्थ होता है,
तब ये चक्र सुचारु रूप से चलते रहते हैं। लेकिन जब शरीर में वात, पित और कफ में से कोई भी
तत्व असंतुलित हो जाता है या कोई विकार हो जाता है, तब हमारे शरीर के ये चक्र प्रभावित हो जाते
हैं। कलर थेरेपी के अंतर्गत शरीर के चक्रों में उपजे इन्हीं विकारों की पहले पहचान की जाती है। फिर
विभिन्न रंगों के इस्तेमाल से उन्हें दूर किया जाता है। रंगों कलर का हमारे मूड, सेहत और सोच पर
गहरा असर पडता है।


कलर थेरेपी ७ प्रकार की होती हैं। पानी को अलग-अलग रंगों की बोतलों में भरकर धूप में रखा जाता
है। इससे उस रंग का असर पानी में आ जाता है और उस पानी का प्रयोग रोग चिकित्सा में किया
जाता है। होम्योपैथी वाले दवाईयों को विभिन्न रन्गों की बोतलों में ४५ दिन तक रखते हैं जिससे रंगों
का पूरा असर दवा में आ जाता है।


रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव कैसे होता है और किन रोगों पर सकारात्मक प्रभाव होता है?
लाल रंग (Red color)-इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव के फ़लस्वरुप शरीर के रक्त संचार में वृद्धि होती है।
एड्रिनल ग्रंथि अधिक सक्रिय हो जाती है फ़लत: शरीर ताकत बढती है। रेड कलर से नकारात्मक
विचार समाप्त होते हैं लेकिन कुछ लोगों में चिड चिडापन भी पैदा हो जाता है।लाल रंग के दुष्प्रभाव
से ब्लडप्रेशर बढ जाता है और हृदय की धडकन भी बढ जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि उच्च
रक्त चाप के रोगी को लाल रंग पुते हुए कमरे से परहेज करना चाहिये।
लाल रंग पसंद करने वाला व्यक्ति उर्जा से भरा, आशावादी, महत्वाकांक्षी होता है। ऐसा व्यक्ति
आकर्षण का केन्द्र रहता है।


नारंगी रंग (Orange color)-
यह रंग पाचन संस्थान को प्रभावित करता है। भूख बढाता है। स्त्री-पुरुषों की सेक्स शक्ति में बढोतरी
करता है। यह रंग शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है। फ़ेफ़डे के रोगों में इसका अच्छा असर
देखने में आता है।
इस रंग को पसन्द करने वाला व्यक्ति साहसी, द्रड प्रतिग्य, अच्छे स्वभाव का होता है। मिलनसार होता
है लेकिन किसी के अपराध को माफ़ नहीं करना करेगा।


पीला रंग (Yellow color)-
यह रंग मस्तिष्क की शक्ति बढाता है। यह व्यक्ति को अति सावधान बनाता है यहां तक कि वह
किसी के साथ धोखा,छल करने से भी नहीं चूकता।
इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति बुद्धिमान ,आदर्श वादी, उत्सुक,एकाकी और बेहद कल्पनाशील
होता है।


हरा रंग (Green color)-
हरा रंग हृदय के लिये उपकारी है। हृदय रोग के मरीजों में तनाव (टेंशन)दूर करता है। आदमी रिलेक्स
अनुभव करता है। व्यक्ति ठंडे पेटे का याने शांत स्वभाव वाला होता है।
इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता, और संतुलन बना रहता है। वह आदर
योग्य होता है और किसी भी हालत में गलत निर्णय नहीं लेता है।


नीला रंग(Blue color)-
यह ब्लड प्रेशर घटाता है। स्निग्ध,शीतल गुण। पीयूष ग्रंथि को उत्तेजित कर नींद संबंधी व्याधियां दूर
करता है। मन को शांत करने का गुण है।
इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति टेंशन से मुक्त रहते हुए शांत स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति
भरोसा करने योग्य होते हैं।रूढीवादी होते हैं।


बेंगनी रंग( Purple color)
यह रंग भूख को घटाता है। मेटाबोलिस्म(चयापचय) क्रिया सुधारता है। इसके प्रयोग से कुछ चर्म
विकार भी ठीक होने के प्रमाण मिले हैं।
बेंगनी रंग पसंद करने वाले सृजनशील प्रवृत्ति के होते है। उनमें संवेदनशीलता होती है। खूबसूरत होते
हैं। उच्च स्तर की कला में पारंगत होते हैं।कलर थेरेपी के सरल ईलाज


प्राणियों का संपूर्ण शरीर रंगीन है। शरीर के समस्त अवयवों का रंग अलग-अलग है। शरीर की समस्त
कोशिकाएँ भी रंगीन हैं। शरीर का कोई अंग बीमार होता है तो उसके रासायनिक द्रव्यों के साथ-साथ
रंगों का भी असंतुलन हो जाता है। रंग चिकित्सा उन रंगों को संतुलित कर देती है जिसके कारण रोग
का निवारण हो जाता है।


शरीर में जहाँ भी विजातीय द्रव्य एकत्रित होकर रोग उत्पन्न करता है, रंग चिकित्सा उसे दबाती नहीं
अपितु शरीर के बाहर निकाल देती है। प्रकृति का यह नियम है कि जो चिकित्सा जितनी स्वाभाविक
होगी, उतनी ही प्रभावशाली भी होगी और उसकी प्रतिक्रिया भी न्यूनतम होगी।


*नंदकिशोर फुटाणे*